Dr

Add To collaction

सौन्दर्य की तू देवी हो

सौन्दर्य की तू देवी हो
या मदिरा मतवाली ।
जो देखे पूजन करता है
अथवा रोज दिवाली ।
पनघट प्यास बढाने वाली
व्याकुल होठ निहारे ।
जाने कैसे जीते होगे
रहते रोज किनारे ।।
पलक झुकी झुक जाये
अम्बर उठे सूर्य मुस्काये ।
चलती ,धरती -दिल हिल जाता
आह हलक तक आये ।।
लचके कमर नदी बल खाये
नैनन मृग ललचाये ।
यौवन भार भरी है देहिया
डाली कुसुम झुकाये ।।
गहरी नाभि भंवर सी लागे
उरु कर करि की भाती ।
लाल होठ किसलय जैसे है
कुच मादक मदमाती ।।
कैसे कौन धरेगा जीवन
विचलित मन दिन-राती ।
सब दूल्हा बनने को तरसे
जाने कौन बराती ।।
डा दीनानाथ मिश्र

   17
8 Comments

Abhinav ji

25-Mar-2023 07:43 AM

Very nice 👌

Reply

बहुत ही सुंदर सृजन

Reply

Swati chourasia

25-Mar-2023 06:37 AM

बहुत ही बेहतरीन रचना 👌👌

Reply